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History of India In Hindi – भारतिय सभय्ता व संस्कृति


History of India In Hindi – भारत के प्राचिन इतिहास, sabhayata, जो सोने चिड़िया कहलाती थी. आज हम भरत के उस सभी सभय्ता के बारे मे जानेंगे।

भारत सभी देशो से अधीक अमिर ओर सबसे महान वाला देश था। भारत के संस्कृति उसके विरासत ओर प्रचिन साहित्य के बारे मे जानेंगे।

History of India in Hindi
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संस्कृति का अर्थ( History of India in Hindi)

संस्कृति अर्थात मानवमन की उर्वरक भूमि मानव समाज की आदते, मूल्य, आचार–विचार, धार्मिक परम्पराए, रहन–सहन और जीवन के उच्चतम उद्देश्यो की ओर ले जाने वाले आदर्शो का योग है। संस्कृति अर्थत ‘गुफा‘ से घर तक की विकास यात्रा।

भारतीय संस्कृति की विरासत

इतिहासकारो और बुध्दिजीवियो की यह मान्यता है कि संस्कृति की उषा भारत मे ही प्रकट हुई थी। भारत की भूमि पर प्रकट होने वाली संस्कृति मात्र सर्वागसुन्दर ही नही थी, किन्तु वह उपयोगिता के संदर्भ वाली तथा व्यवस्थित और आयोजन पूर्वक की थी।

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प्राचीन भारतीय साहित्य(History of India in Hindi)

  • भारतीय साहित्य का प्राचीनतम ग्रन्थ “ऋग्वेद” है। इसमे कुल 1028 ऋचाओ का संग्रह है। इन ऋचाओ मे से अधिकांश देवो की स्तुतिया है। ये स्तुतिया यज्ञादि पर गाई जाती है। इसमे से उषा को संबोधित करने वाली स्तुतिया अत्यन्त मन्मोहक है।
  • ऋग्वेदके बाद अन्य तीन वेदो की रचना की गयी जिन्मे यजुर्वेद मे यज्ञादि की विधिया दर्शाइ गई है। सामवेद मे ऋग्वेद के छंदो को गानो का तरीका बताया गया है। जब की अथर्ववेद मे अनेक प्रकार के कर्मकांडो ब्राह्मण ग्रंथो का वर्णन है। वेदो के बाद साहित्य की रचना हुये जिसमे वैदिक साहित्य ओर मानवीय आचरणो की विस्तृत जानकारी दी गयी है।
  • भारत के दो मुख्य महाकाव्य “रामायण” ओर “महाभारत” के नाम से जानेजाते है। महाभारत मे लगभग एक लाख काव्य श्लोक है।
  • विश्व का सबसे बड़ा काव्य ग्रंथ है। इसमे कौरवो ओर पंडवो के बीच हुई युद्ध का इसमे वर्णन है।
  • “श्रीमद भगवद् गीता” जिसमे गहन दार्शनिक सिद्धान्तो का विवेचन किया गया है। जिसमे मोक्ष प्राप्ति के तींन मार्ग-ज्ञान, कर्म ओर भक्ति मार्ग का विवेचन किया गया है

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प्राचीन भारत का नगर–आयोजन

प्राचीन युग से भारत नगर आयोजन मे निपुण रहा है। जिसके उतर उदाहरण के रुप मे कच्छ के भचाऊ तहसील मे स्थित खदीरभेट के “धोलावीर’’ को ले सकते है। पुरातात्विक उत्खनन से यह महानगर प्रकशमान हुआ है इस महानगर के तीन अनुभाग हुए है:

  • प्रशसनिक अधिकरियो का किला (सिटाडेल)
  • अन्य अधिकारियो के निवास का उपनगर
  • साधरण नगरजनो के आवास युक्त निम्न नगर

मोहे-जो-दड

हडप्पीय संस्कृति से प्राप्त नगरो मे मोहे-जो-द्डो आयोजन कि दृष्ठि से उत्तम था । इमारते बाढ एव नमी से सुरक्षित रखने के लिए चबुतरे पर बनाई गई है। धनवान लोगो की इमारते दो मजले की, पंच-सात कमरेवाली थी।

निम्न वर्ग के लोगो के मकान एक मंजिल और दो‌-तीन कमरे वाले थे। मकान के मुख्य व्दार राजमार्ग के बजाय गली मे पड़ते थे। उँचाई वाले क्षेत्र के चारो ओर समग्र नगर के चारो ओर दीवार की गई थी।

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रास्ते

यहाँ 9.75 मीटर चौडे रास्ते थे। और छोट-मोटे रस्ते समकोण पर मिलते थे। एक साथ कई सवारी जा सके इतने चौडे रास्ते मोहे-जो-द्डो मे थे। इन मार्गो की रचना इस प्रकार की थी कि तेज हवा चलने पर कूडा-करकट कचरा साफ हो जाता था।

मार्ग के बगल मे समान अंतर पर एक समान खंडे है जो रात्रि प्रकश के उपयोग के लिए होगे। निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि यहाँ के रास्ते अति आधुनिक एवं सुविधपूर्ण थे।

गटर आयोजन

विश्व की प्रचीन संस्कृति मे मोहे-जो-दडो की गटर योजना अनोखी विशेष प्रसिध्द है। मकान का जल नीचे की पक्की गटर मे जाता था। वहाँ से प्रमुख गतर व्दारा शहर से बाहर बह जाता था।

प्रत्येक मकान मे खारकुआ था। एक निश्चित सतह तक पानी भर जाने पर अपने आप छोती गतर से बडी गटर मे पहुँच जाता था। अमुक अंतर पर गटर पर ढ्क्कन भी रखे गये थे।

इस प्रकार की गटर योजना भूमध्य समुद्र के क्रीट व्दीप के अलावा कही भी नजर नही आती। इसे देखकर गर्व होता है, कि प्रजा के आरोग्य ओर सुख का कितना खयाल रखा जाता था।

सार्वजनिक स्नानागार

मोहे- जो- दडो से एक विशाल स्नानागार भी प्राप्त हुआ। उसकी लंबाई 54.80 मीटर, चौड़ाई 32.90 मीटर है। बीचवाले स्नान कुंड की लंबाई, 12.10 मीटर, चौड़ाई 7 मीटर तथा हगराई 2.24 मीटर है।

सार्वजनिक मकान

मोहे- जो- दडो से सार्वजनिक उपयोगवाले दो मकान भी प्राप्त हुये। एसा माना जता है, कि इन खंडो का सभाकक्ष, मनोरंजन खंड, सभागार अथवा राज्य कोठार के रुप मे उपयोग मे लेते होंगे। 20 मकान की एक पंक्ति भी प्राप्त हुई है।

शिल्प स्थापत्य कला तथा नगर आयोजन के ये नमुने हजारो साल पुरानी भारत की प्राचीन कला का यशगाथा की उत्तम विरासत समग्र विश्व मे भारतीय संस्कृति को अप्रतिम कीर्ति दे रही है ओर यश दिलाती रहेगी।

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भारत के प्रशिद्ध प्रचिन विरासत(History of India in Hindi)

अंजता की गुफाऐ

अंजंता की गुफाओ का निर्माण महाराष्ट्र के सहयाद्री पर्वत को तराशकर किया गया है। शिल्पकारो ने कठोर परिक्ष्रम के बाद नक्काशी करके प्रतिमाओ का निर्माण किया गया है। गुफा के दीवार पर चूने का प्लास्टर किया जाता था। गुफाओ की चित्रकला वैविध्यपुर्ण है। भगवान बुद्ध की जीवनकथा के साथ तत्कालीन समाजर्शन को भी इन गुफाओ मे चित्रित किया गया है। वनस्पतिजन्य रंगो का इसमे प्रयोग किया गया है।

अजंता की गुफाओ ,ए गुफा न 9,10,19,26 ओर 29 चैत्य(मंदिर) है, बाकी के गुफा विहार यनी की बागिचा है। बर्षात के होने के बाद देखा जाये तो प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आंनद लिया जा सकता है।

इलोरा की गुफाऐ

शिल्प स्थापत्य की सुंदर नमूनेदार लगभग 34 गुफाऐ इलोरा मे है। इन उत्तम गुफाओ मे हिंदू देवताओ की विरल कथाऐ पत्थर मे तराशकर अमर बना दी हई है। कैलास मंदिर राष्ट्रकूट राजाओ की देन है। इस मंदिर को बड़े पाषाण मे से तराशा गया है। सुंदरशिल्प से सौंदर्यमंडित है।

इलोरा के गुफाये जहा कूल 34 गुफाऐ है। इन गुफा मंदिरो मे संख्या 1 से 12 बौद्ध , जैन पश्चात राष्ट्रकूट बंश के समय गुफा 30 से 34 तक का निर्माण हुआ था। आकर्षण कैलास मंदिर है, जो की 50 मीटर लंबा 33 मीटर उचा है।

एलिफेंटा की गुफाऐ

ये गुफाऐ मुम्बई के पास अरब सागर मे स्थित है। इस गुफाओ मे ‘त्रिमूर्ति’ की भव्य प्रतिमा मे ईश्वर के तीनो स्वरुप का चित्रण है। स्थापत्य का यह उत्त्म नमूना है। पुर्तगाली सर्वप्रथम इस जगह पर आये थे। हाथी के आकार के पत्थर निर्मित जगह थी। इस आकृति को देख कर इन्होने इस जगह को एलिफेंटा नाम दे दिया। इस जहग को स्थानीय मछुआरे “धारापुरि” कहते है। गुफा नंबर 1मे भगवान शिव के तीन रुपो दर्शाती हुई त्रिमूर्ति है।

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भारत के प्रशिद्ध इमारत(History of India in Hindi)

कुतुब मीनार

  • भारत के महत्वपूर्ण स्मारको मे से कुतुबमीनार एक महत्वपूर्ण स्मारक है। 2.5 मीटर उची इस गगनचुंबी की रचना मे गोल, लाल पत्थर ओर संगमरमर का खुल के उपयोग किया गया है। इसका जमीन पर धेरा 13.75 मीटर है जो उचाई बढ़ने पर 2.75 मीटर होता है।
  • इस भव्य इमारत के निर्माण कार्य का आरम्भ 12वी सदी मे कुतुबुद्दीन एबक ने बंवाया था, उसकी मौत के पश्चात 1210 तक सुधार करके उनके दामाद तथा उत्तरधिकारी इल्तुत्मिश ने पुर्ण किया था।
  • ये भारत मे बनी आज तक के बने सबसेउची इमारत है।

हम्पी

  • यह नगर कर्णाटक के बेल्लारी जिला के होसपेट तहसील मे तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। 14वी सदी मे हम्पी विजयनगर के साम्राज्य की राजधानी थी। आज यह केवल विजय नगर के राजाओ की कीर्ति दर्शानेवाला भग्रावशेषो का स्थल मात्र है।
  • 1336 मे हरिहर ओर बुक्काराय ने इसकी स्थापना की थी। 1509से 1529 का समय कृष्णदेवराय के राज्य का स्वर्णकाल कहा जाता है।
  • 1565 मे विजय्नगर के अंतिम राजा राम्राय को वालीकोट के युद्ध मे पराजय मिली इसके बाद इस राज्य का पतन हुआ।

हमायु का मकबरा

दिल्ली मे स्थ्ति इस स्मारक को 1565 मे बनाया गया था। बाबर की मृत्यु के बाद हमाउ मुगल सम्राट बना था। 1556 मे हमायू की आकस्मिक मृत्यु होने पर उसकी हमीदा बेगम ने भारतिय तथा ईरानी कारीगरो को बुलाकार हूमायु की याद मे भव्य मकबरा का निर्माण किया गया था

आगरे का किला

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले मे स्थित यह किला लाल पत्थरो से बनाया गया है। जिसका आकार विशाल है। 1565 मे मुगल बादशाह अकबर ने इसे यमुना नदी के किनारे बनवाया था। इस किनारे को दीवारे 70 फुट उची तथा इसके चारो ओर 40 फुट की गहरी खाई है। शाहजहा ने जिंदगी के अंतिम समय इसी किले मे बिताये थे। किले के अंदर अकबर ने “जहागीर महल” जिसमे बंगाली ओर गुजरती शैली का अनोखा वर्णन देखने को मिलता है।

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ताजमहल

  • ताजमहल दुनिया के सात अजुबो मेसे एक है। जो मुगल बादशाह शाहजहा ने बनबाया था। सन 1631 मे उसकी बेगम अर्जमंदबानू की निधन हो गया था। जिसके याद मे शाहजहा ने ताजमहल को बनबाया था।
  • ताजमहल को बानाने मे कूल खर्च साढ़े चार करोड़ से भी अधीक का खरचाआया था।
  • सन1631 मे इस महल को बनाने का काम आरंभ किया गया था ओर 1653 मे सम्पन्न किया गया था।
  • यमुना नदी के किनारे पर इसका निब रखा गया था।
  • प्रवेश दरवजा इसका एक भव्य ओर आकर्षक है, मध्यभाग मे गुम्बज, सूक्ष्म नक्काशी, संगमरमर के रंगीन टूकड़े तथा कीमती पत्थरो की सजावट के उपरांत चारो ओर स्थित सुन्दर बाग-बगीचे तथा फव्वारे ताजमहल को हद से ज्यादा आकर्षल बनाते है।
  • ताजमहल के मध्य मे मुमताज का कब्र है। उअसकी मकबरे के उपर “स्वर्ग के बगीचे मे पवित्र दिलो का स्वागत है” ऐसा लिखा हुआ है।
  • भारतीये कला-स्थापत्य की विरासत को यह ताजमहल विश्वभर मे गौरवान्वित करता है।

लाल किला

  • लाला किला का निर्मान मुगल बादशाह शाह्जहाने करवाया था। जिसे बन्ने मे कुल दस साल लग गया था।
  • इस किलेको पुरे लाल पत्थरो से बनाया गया है। इस किले मे कमान अकार के दो प्र्वेश दरवाजा ओर संगमर्मर के गुब्बज है।
  • किले मे दीवाने आम,दीवाने खास, रंगमहल, मुमताज का शीशमहल, ओरंगजेब ने निर्मित करया गया मोती मस्जिद, लाहोरी दरवाज, मीना बाजार ओर मुगल गार्डन जैसे आकर्षणो का समावेश होता है।
  • किले मे उसका कलात्मक सर्जन मयूरासन था जिसे नादिरशाह अपने साथ ईरान ले गया था।

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भारत के कुछ सुप्र्सिद्ध किले (केवल नाम)(History of India in Hindi)

  1. कंगड़ा क किला (हिमाचल प्रदेश)
  2. जजिरा ओर सिन्हगढ के किले जो समुंद्र मे अंदर स्थित है। (माहारष्ट्र)
  3. चितौड़गढ ओर रण्थंभोर के किले (राजस्थान)
  4. असीरगढ़ माडू तथा ग्वालियर का किला (मध्य प्रदेश)
  5. गोल्कुण्डा का किला (आंध्रप्रदेश)
  6. दौलताबाद का किला (महारष्ट्र)
  7. जिंजि का किला (तमिलनाडू)
  8. रोहतास का किला (बिहार)
  9. पावागड़-चंपानेर का (किला)

ललितकलाये:

संगीत कला

स्वर, ताल ओर लय जो भारतीय संगीत पुरे विश्व मे अन्य देशो से अलग है। संगीत मे गायन ओर वादन का समावेश होता है।

हमारे संगीत मे मुख्यत: पांच राग है।

1.                   श्री2.                   दीपक3.                   हिंडोल4.                   मेध5.                   भैरवी

ये साब भगवान शंकर के मुख से निकले है ऐसा माना जाता है। “समवेद” से ये संगीत का उत्त्पन हुआ है।

प्राचीन भारत मे संगीत के बहूत से ग्रंथ लिखे गये है।

  • संगीत मकरंद

नारद नामक संगीतशास्त्र के जानकार पंडित ने ई.सन900 के आसमान “संगीत मकरंद” नामक ग्रंथ लिखा थ। “ संगीत मकरंद” मे 19 प्रकार की वीणा ओर 101 प्रकार के  ताल का वर्णन कीया गया है।

  • संगीत रत्नाकर

इस ग्रंथ का रचिता प सारंगदेव थे। दौलताबाद मे रहते थे, इसलिये उत्तर भारत ओर दक्षिण भारत के संगीत से प्रिचित थे। पंडित विष्णुनारायण भातखंडे ने संगीत रत्नाकर को संगीत का सर्वश्रष्ठ प्रमाण्भूत ग्रंथ माना गया है।

  • संगीत परिजात
  • सभी संगीत ग्रंथो मे “संगीत परिजात” महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। 1665 मे पंडित अहोबल ने उत्तर हिंदुस्तानी संगीत पद्धति के लिये यह ग्रंथ लिखा था।
  • इस ग्रंथ मे 29 प्रकार के सव्रो को बताया है।
  • अलाउद्दीन खिलजी के समय मे संगीत के क्षेत्र मे प्रतिभा रकह्ने वाले अमीर खुसरो बहुत मशहूर थे।
  • स्न्गीत ओर शायरी के क्षेत्र मे अनेक योगदान के कारण शायरी के इतिहास मे वे “तूती-ए-हिंद” के रुप मे प्रसिद्ध हुये थे।
  • 15वी 16वी सदी मे भारत मे भक्ति आंदोलन शुरु हुआ उस समय कबीर,तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु, मीराबाई, नरसिंघ मेहता आदि के कीर्तनो से गलिया गुंज उठी थी। इसी तरह 15वी सदी मे स्वामी हरिदस के शिष्य बैजू बावरा(बैजनाथ) ओर तानसेन संगीत के अनमोल रत्न थे।

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नृत्य कला

मूल संस्कृत “नृत्य“ से नृत्य, शब्द उदभवित हुआ है। ताल और लय के साथ सौंद्रर्य की अनुभूति कराने का साधन नृत्य है। नृत्य के देवाधिदेव महादेव नतराज माने जाते है।

पृथ्वी के लोगो को नृत्यसिखानेके लिए नृत्य को स्वर्ग से नीक्हे लानेवाले वे प्रथम थे। भारत के शास्तिय् नृत्य के प्रकारो मे भरतनाट्यम, कुचीपुडी, कथकली, कथ्थक, ओडिसी और मणिपुरी मुख्य है।

भरतनाटयम

तमिलनाडु का तंबोर जिला “भरतनातयम” नृत्यशैली का उदभव स्थान माना जाता है। भरतमुनि रचित नाटयशास्त और नदीकेश्वर रचित अभिनव दर्पण ये दोनो ग्रन्थ भरतनाटयम के आधारस्तंभ है|

मृणालिनी साराभा , गोपीकृष्ण, बिरजू महाराज वैजयंतिमाला और हेमामालिनी आदि ने प्राचीन भारत की इस विरासत को आज भी जीवित रखा है।

कुचीपुडी नृत्यशैली

कुचीपुडी नृत्य आंध्र मे प्र्चलित है। जो कि भरतनाटयम से मिलते जुलते नृत्य का एक प्रकार है। गुरुप्रहलाद शर्मा, राजा रेड्डी, शोभा नायडु आदि प्रख्यात नर्तको ने इस प्राचीन विरासत को आज भी जीवित रखा है।

कथकली

कथकली शब्द कथा के साथ जुडा हुआ है। रंगबिरंगी वेशभूषा तथा प्रभावपूर्ण प्रस्तुती के लिये कथकली शैली प्रसिध्द है। कथकली का मूल धाम केरल   इस नृत्य के पात सुन्दर घेरदार कपडे पहनते है, वे डा कलात्मक मुकुट भी धारण करते है। इसकी कथावस्तु मे मुख्य्तः जटायुवध , राम-रावण युध्द, नल-दमयंति आदि के कथा देखने को मिलती है।

इस पोस्ट में आपको जानकारी मिल गई होगी हमने आपको History of India in Hindi के बारे में बताया

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